अद्धितीय भारत

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भारत से इस प्रकार प्रेम करो जिस प्रकार स्वामी विवेकानन्द करते थे| दुर्बलता का उपचार सदैव उसका चिन्तन करते रहना नहीं है, वरन् बल का चिन्तन करना है। मनुष्य में जो शक्ति पहले से ही विध्यमान है, उसे उसकी याद दिला दो। मनुष्य को पापी न बतलाकर वेदान्त ठीक उसका विपरीत मार्ग ग्रहण करता है और कहता है, 'तुम पूर्ण और शुध्धस्वरुप हो ओर जिसे तुम पाप कहते हो, वह तुममें नहीं है।' जिसे तुम 'पाप' कहते थे, वह तुम्हारी आत्माभिव्यक्ति का निम्नतम रुप है, अपनी अात्मा को उच्चतर भाव में प्रकाशित करो। यह एक बात हम सबको सदैव याद रखनी चाहिए और इसे हम सब कर सकते हैं। कभी 'नहीं' मत कहना, 'मैं नहीं कर सकता' यह कभी न कहना, क्योंकि तुम अनन्तस्वरुप हो। तुम्हारे स्वरुप की तुलना में देश काल भी कुछ नहीं हैं। तुम सब कुछ कर सकते हो, तुम सर्वशक्तिमान हो। धर्म यदि मानवता का कल्याण करना चाहता है, तो उसके लिए यह आवश्यक है कि वह मनुष्य की सहायता उसकी प्रत्येक दशा में कर सकने में तत्पर और सक्षम हो - चाहे गुलामी हो या आजादी, घोर पतन हो या अत्यन्त पवित्रता, उसे सर्वत्र मानव की सहायता कर सकने में समर्थ होना चाहिए। केवल तभी वेदान्त के सिध्दान्त अथवा धर्म के आदर्श - उन्हें तुम किसी भी नाम से पुकारो - कृतार्थ हो सकेंगे।
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Publication Year 2014
VRM Code 3080
Edition 1
Pages 588
Volumes 1
Format Soft Cover
Author Dr. M. Lakshmi Kumari
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