स्वामी विवेकानंद अमरीका में
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यह सभी को ज्ञात है कि स्वामी विवेकानन्द ने पश्चिमी देशो में हिन्दू धर्म का प्रतिनिधत्व वेदान्त का मूल तत्व समझाने की दृष्टि से किया था। ऐसा लगता है कि सन् १८९३ के सितम्बर माह में शिकागो में जो सर्वधर्म महासभा हुई , वह अतंत: आयोजनकर्ता देश अमेरिका की अपेक्षा, भारत के लिए कहीं अधिक युग-निर्माणकारी घटना सिध्द हुई।
पश्चिमी देशो में स्वामीजी ने जो अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की, उसकी बराबरी का अन्य उदाहरण विश्व के किसी भी देश के धार्मिक इतिहास में नहीं है। तथापि प्रसिध्दि पा लेने के पूर्व और बाद में भी स्वामीजी ने जिन कष्टों, अभावों व चुनौतियों का सामना किया और जो शारीरिक व मानसिक यातनाएँ सहीं, वे स्वामीजी के प्रबल धैर्य, कष्ट-सहिष्णुता और परिणामों की परवाह किए बगैर अन्तिम सफलता प्राप्त होने तक संघर्षरत रहने की उनकी अदम्य इच्छाशक्ति की द्योतक हैं। उनके द्वारा सही गई यातनाओं और कठिनाइयों का वर्णन, हम सभी को कठिनाइयों और परीक्षा की घड़ी में दूसरों के लिए उच्च आदर्शों पर डटे रहने की प्रेरणा देता है।
इस पुस्तक में लेखिका ने स्वामी विवेकानन्द की अमेरिका यात्रा की जिन प्रमुख घटनाओं को संकलित किया है वे स्वामीजी के अदम्य उत्साह, उनके सर्वत्र एवं सर्वदा सफल होने और सत्य की शक्ति का प्रेरक उदाहरण हैं। पुस्तक में स्वामीजी द्वारा धर्मान्तरण के विषय में दिए गए खरे-खरे उत्तर किसी जातीय अभिमान की उपज मात्र न होकर उनके गहन वैदिक-ज्ञान से उदभूत थे।
विवेकानन्द केन्द्र की मासिक अँगरेज़ी पत्रिका "युवा भारती" ने Swami Vivekananda in America शीर्षक के साथ अँगरेजी में लेखों की एक श्रृंखला प्रकाशित की थी। यद्यपि यह प्रकाशन केन्द्र के कार्यकर्ता के लिए संगठन के काम के काम दौरान प्रशंसा या अपयश की परवाह किए बगैर आदर्शों की प्रतिबध्दता, दृढ़ निश्चय और लगन के महत्व को प्रतिपादन करने की दृष्टि से हुआ था, फिर भी समाजोपयोगी कार्य के आकांक्षी सभी कार्यकर्ताओं पर ये मूल्य समान रुप से लागू होते हैं। अतएव विवेकानन्द केन्द्र ने उन लेखों का प्रथम संस्करण वर्ष २००९ में पुस्तकाकार में प्रकाशित किया था परन्तु पुस्तक की माँग के कारण यह द्वितिय संस्करण का संशोधन व परिमार्जन केन्द्र कार्यकार्ता इन्दौर निवासी श्री सुरेश प्रभावऴकर ने किया है।
एक ही केन्द्रीय विषय पर विचारों का संकलन होने के कारण प्रस्तुत का अपना एक विशेष महत्व है। आशा है कि यह पुस्तक भारत ही नहीं विदेशों में भी, समविचारी कार्यकार्ताओं के लिए प्रेरणा का एक महत्वपूर्ण श्रोत सिध्द होगी।
Publication Year | 2009 |
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VRM Code | 1537 |
Edition | 3 |
Pages | 92 |
Volumes | 1 |
Format | Soft Cover |
Author | Nivedita Raghunath Bhide |
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