कर्मयोग (Karmayoga)
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"जैसा कि मैं सदैव तुम्हें कहता हूँ कि किसी भी व्यक्ति को पापी कहकर उसकी निन्दा मत करो । तुम उसका ध्यान उसके भीतर छिपी हुई दिव्य शक्ति की ओर आकर्षित करो। ठीक उसी प्रकार, जिस प्रकार से भगवान, अर्जुन से कहते हैं - "नैतत्त्वय्युपपद्यते तुम्हें यह शोभा नहीं देता। तुम तो समस्त बुराइयों से दुर अविनाशी आत्मा हो। तुम अपने स्वरुप को भूल रहे हो अत: स्वयं को पापी समझते हुए तुम शारीरिक कष्टों और मानसिक पीड़ाओं से त्रस्त हो, तुमने स्वयं को एेसा बना लिया है - तुम्हें यह शोभा नहीं देता ! भगवान कहते हैं - "क्लैब्य मा स्म गम:" पार्थ - हे पृथा पुत्र ! नपुंसकता या कायरता के शिकार मत बानो। इस संसार में न तो पाप है और न पीड़ा,न रोग है, न दु:ख। संसार में यदि कोई 'पाप' कहा जा सकता है तो वह 'भय' है। यह जान लो कि जो भी कार्य तुम्हारी अन्तर्निहित शक्ति को प्रकट करे वही पुण्य है और जो तुम्हारे तन और मन को दुर्बल बानए वह पाप है। इस दुर्बलता को मन से निकाल फेंको। क्लैब्य मा स्म गम: पार्थ ! तुम वीर हो, तुम्हें यह शोभा नहीं देता।
हे मेरे पुत्रों ! यदि तुम यह सन्देश संसार को दे सको - 'क्लैबयं मा स्म गम: पार्थ नैतत्त्वय्यु पपद्यते', तो संसार से समस्त रोग, शोक, पाप और पीड़ा तीन दिन में मिट जायँ। दुर्बलता के सभी ये विचार कहीं नहीं रहेंगे - भय के कंपन की यह धारा भी - इस समय प्रत्येक स्थान पर है । इस धारा को उलट दो, इसमें विपरीत धारा को प्रवाहित करो और चमत्कारपूर्ण परिवर्तन को देखो ! तुम सर्वशक्तिमान हो - तोप के मुँह के सम्मुख चले जाओ डरो मत।" - स्वामी विवेकानन्द
VRM Code | 3006 |
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Pages | 152 |
Volumes | 1 |
Format | Soft Cover |
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