परीक्षा दे हसते हसते
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क्या ? परिक्षा के तनाव को भूल, खेल की तरह हँसते-हँसते इसे दिया जा सकता है ? क्या सफलता भी पायी जा सकती है ? हँसते-हँसते.......
हाँ ! यह सम्भव ही नहीं, सरल भी है। आपको केवल विश्वास करना है-हम पर और उससे भी अधिक अपने आप पर। आप परीक्षा देनेवाले हैं, पर निश्वय ही पहली बार नहीं। जो कार्य हम जीवन के चौथे वर्ष से लगातार हर वर्ष कम - से - कम तीन बार करते आ रहें है, उससे क्या डरना ? फिर भी यदि डरते ही हैं, तो यह पुस्तिका आपको साहस देगी। संघर्ष का हौसला देगी। हँसते - हँसते .......
जी ! हम जानते हैं - हम क्या कह रहे हैं। गत बारह वर्षों से सैंकड़ो कार्यशालाओं में हजारों को लाभान्वित होते हुए हमने देखा है। यह बात अवश्य है कि सफलता का अनुपात अभ्यास, सातत्य व श्रध्दा पर निर्भर करता है। यदि लगातार ध्यान देते रहें तो सफलता निश्चित है। हँसते-हँसते.......
ना ! केवल इस पुस्तक को पढ़नेभर से काम नहीं चलेगा। इसमें बताये मार्ग पर आपको चलना पडेगा। यदि आप कार्यशाला में सहभागी हो चुके हैं, तो यह पुस्तिका आपकी स्मृति का साथ निभायेगी। परन्तु, यदि आप पहली बार पढ़ रहे हैं, तो शीघ्र ही अपने निकट की विवेकानन्द केन्द्र शाखा पर सम्पर्क करें। प्रशिक्षित विशेषज्ञों से मार्गदर्शन प्राप्ति के बाद इस पर अमल करें। हँसते-हँसते.......
ॐ ! गम्भीरता से देखें तो परीक्षा प्रत्येक की होती है। वह भी जीवन-पर्यन्त ! केवल अध्ययन से समय ही नहीं। जीवनभर हर परीक्षा में अव्वल उत्तिर्ण होने की सारस्वत प्रार्थना के साथ सादर समर्पित । हँसते-हँसते.......
श्री ! की कृपा से यह पंचम् संवर्धित संस्करण प्रकाशित किया जा रहा है। विश्वास है, पुन वैसा ही भाव से परिपूर्ण पाठकों का स्नेह मिलता रहेगा - हँसते-हँसते.......
VRM Code | 1661 |
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Edition | 5 |
Pages | 108 |
Volumes | 1 |
Format | Soft Cover |
Author | Mukul Kanitkar |
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