मंत्र सफलता का
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प्रकृति त्रिगुणात्मक होने के कारण तथा प्रत्येक कर्म में अच्छे बुरे का मिश्रण होने के कारण हमारा अपेक्षित आदर्श जगत कभी भी अस्तित्व में नहीं आयेगा। जीवन अर्थात् निरन्तर संघर्ष ! फिर भी हमें कर्म करना है, वह भी आत्मशुद्धि हेतु।
एक बार गुरुजी गोऴवलकर से एक व्यक्ति ने उनके जीवन का प्रधान सूत्र पूछा तब गुरुजी बोले -' मैं नहीं तू '- इस प्रकार सर्वोच्च आत्मयाग या सम्पूर्ण आत्मविसर्जन ही कर्मयोग का मूलतत्त्व है।
Publication Year | 2012 |
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VRM Code | 1904 |
Edition | 1 |
Pages | 64 |
Volumes | 1 |
Format | Soft Cover |
Author | Sunil Chincholakar |
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