सावरकर : विवेकानन्द के परिपेक्ष्य में
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वीर सावरकर में देशभक्त विद्वान् , एक समाजसुधारक, बुद्धिवादी, मानवता-वादी, दार्शनिक, इतिहासकार, अलौकिक दूरदृष्टिवाले राजनेता और असाधरण वक्ता के गुणों का दुर्लभ समन्वय था। सिद्धान्तवादी होने के साथ साथ क्रियाशील भी थे और मराठी साहित्य में तो बेजोड़ थे। वे महाकाव्य की ऊँचाई को छूने वाले कवि, प्रतिभाशाली निबन्धकार और नाटककार थे।
उन्होंने अपने लेखन मेम विज्ञानप्रणीत संस्कारों का अनुमोदन एवं अनुकरण किया। उनके कार्यक्रम तर्कसंगत बुद्धिवाद एवं कारण मीमांसा पर आधारित होते थे। परन्तु उनका ध्येय के प्रति सम्पूर्ण समर्पण एवं आत्मबलिदान की ओर आकर्षण, गहन अध्यात्म से प्रेरित थे।
वे वेदान्त एवं स्वामी विवेकानन्द की ओर शैशव काल से ही आकर्षित थे। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि उनके लेखन में भगवद् गीता उपनिषद् आदि शंकराचार्य एवम मराठी सन्त कवियों के उद्धरण बहुतायत में पाये जाते हैं। वे पातंजल योग को विज्ञान मानते थे। उसका अभ्यास उन्होंने पोर्ट ब्लेयर में आजीवन कारावास की सजा काटते समय भी किया। योगवसिष्ठ उनका प्रिय ग्रन्थ था।
जैसा कि उनकी बेजोड़ पंक्तियों में व्यक्त किया गया है, वे मातृभूमि की सेवा को रघुवीर की सेवा मानते थे। उनके लिए मातृभूमि की सेवा मानवसमाज की सेवा का ही अंग था। उन्होंने अध्यात्म एवं त्याग का कभी आडम्बर नहीं किया।
स्वतन्त्रता के बाद राज्य एवं केन्द्र में स्थित कांग्रेस-सरकारों ने सावरकर का उत्पीडन किया एवं उनके साथ तुच्छतापूर्ण व्यवहार किया। कांग्रेस ने दावा किया कि उसने अकेले ही गाँधीजी के नेतृत्व में अहिंसात्मक आन्दोलन से देश को स्वतन्त्रता दिलाई । मध्यममार्गीय आन्दोलनकारियों एवं क्रान्तिकारियों के भारतीय स्वतन्त्र्य संग्राम में दिये गए योगदान को, योजनाबद्ध तरीके पाठ्यपुस्तकों से हटा दिया गया। आकाशवाणी के लिए सावरकर सालों तक अवाछनीय व्यक्ति रहे। मुख्य प्रसार माध्यम (समाचारपत्र एवं इलेक्ट्रोनिक मीडिया), धर्मनिरपेक्ष (राजनीतिक) दल आज भी उन्हें जातिवादी, प्रतिक्रियावादी, रुढ़िवादी इत्यादि से लांछित करते हैं।
सावरकर के चरित्रलेखकों ने सम्भवत विस्तार-भय से उनके व्यक्तित्व के दो महत्वपूर्ण पहलूओं - उदात्त आध्यात्मिकता और मानवतावाद की विस्तृत चर्चा नहीं की है। महाराष्ट्र के बाहर यह महान् व्यक्ति सिर्फ मार्सेल्स ( फ्रांसीसी बन्दरगाह ) के समीप समुद्र में लगाई गई छलाँग के लिए जाना जाता है।
मनोज नाइक का निबन्ध सावरकर इन दी लाइट ओफ विवेकानन्द विद्वत्तापूर्ण सामयिक सृजन है। श्री नाइक ने सावरकर और विवेकानन्द के साहित्य का परिश्रमपूर्वक अध्ययन कर विषय - वस्तु को सिलसिलेवार ढंग से प्रस्तुत किया है। अपने मुख्य विषय की चर्चा में सावरकर के आलोचकों के आरोपों का यथोचित खण्डन किया है। भारतमाता के एक महान् सपूत के दस्तावेजों से समर्थित गहन अध्ययन के लिए वह (श्री नाइक) अभिनन्दन के पात्र हैं।
Publication Year | 2012 |
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VRM Code | 1915 |
Edition | 1 |
Pages | 106 |
Volumes | 1 |
Format | Soft Cover |
Author | Manoj Shankar Naik |
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