तेजस्वी जीवन

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जिनके पास शक्ति, ज्ञान और कृतृत्व है, वे लोग उसका उपयोग सत्कार्य में नहीं करते। उनके मन में आत्मविश्वास जगाने का दायित्व मेरा ही है। ऐसा भाव यदि मेरे मन में जागृत होता है तथा ओर मेरा सतत् चिंतन चलता है तब ऐसे कृतिशील विचार को तप कहते हैं। ऐसे तप से ही तेजस्वी जीवन प्राप्त होता है। भगवान् राम तथा भगवान् श्रीकृष्ण के विचार मेरा पाथेय है। ऐसा विश्वास ही मुझमें सन्तोष तथा पर दुख कातरता के भाव पैदा करेंगे।
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Publication Year 2012
VRM Code 1907
Edition 1
Pages 80
Volumes 1
Format Soft Cover
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