विश्वविजय का आत्मविश्वास
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मेरे अमेरिकन बहनों एवं भाइयों, स्वामी विवेकानन्द का शिकगो में प्रवचन के प्रारंभ का यह संबोधन अजरामर हो गया। वास्तविक रुप से देखा जाय तो बंधुत्व भाव और आत्मियता यह हिन्दू समाज और संस्कृति का सहज भाव है। यहाँ की सैकड़ों पीढ़ियों के मानस में, इस मिट्टी में विकसित संस्कृति ने इसे स्थापित किया है। इसीलिए स्वामी विवेकानन्द के मुख से वह सहज रुप से बाहर आया। अपने-अपने धर्म-दर्शन की श्रेष्ठता के संबंध में आत्ममुग्धता में डूबे हुए पाश्चात्य विद्धानों की दृष्टि में वह उदगार और इसमें अंतर्भूत भाव इससे पूर्व उन्होंने कभी अनुभव नहीं किया था। इसीलिए, सबको वह अदभुत लगा और समूचा सभागृह तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा था।
Publication Year | 2013 |
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VRM Code | 1905 |
Edition | 1 |
Pages | 32 |
Volumes | 1 |
Format | Soft Cover |
Author | Prabhakar Pathak |
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