सूर्यनमस्कार कैसे करें ?
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सूर्यनमस्कार में जिस स्थिति में श्वास लेकर छोडना है तो श्वास छोडने के समय ऊँ ध्वनि का उच्चारण कर सकते हैं। इससे शरीर में और अधिक शिथिलता का अनुभव होगा।
श्वसन के समय भी पूर्ण शरीर शिथिल होने पर एक या तीन बार ऊँ ध्वनि का उच्चारण कर सकते हैं।
१) यह एक अत्यन्त सरल पद्धति है, जिसे आठ (आधुनिक मत में छ:) वर्ष की आयु के बालक से लगाकर सामान्य शक्ति वाले वृद्ध व्यक्ति तक सभी कर सकते हैं।
२) इसमें कुछ खर्च भी नहीं करना पड़ता, मात्र नित्य थोड़ा सा समय ही तो लगाना पड़ता है।
३) शरीर में रोग के दो प्रमुख कारण होते हैं एक: ऊर्जा की कमी और दो; विषाक्त पदार्थों का जमाव। सूर्य नमस्कार के अभ्यास से शरीर में प्राण की आपूर्ति के साथ ही विषाक्त पदार्थों के बाहर निकल जाने से, शरीर निर्मल और नीरोग बन जाता है।
४) मन में उठने वाले विचार भी वस्तुतः ऊर्जा के ही स्वरूप हैं, अतः इसके अभ्यास द्वारा मन के पर्याप्त ऊर्जा मिलने से मानसिक निर्बलता भी दूर हो जाती है।
५) स्वरूपतः (अपने मूल रूप में) बुद्धि कभी अशुद्ध नहीं होती, केवल उस पर अावरण आ जाने के कारण ही वह कंठित होती है। इस अभ्यास के द्वारा यह आवरण धीरे-धीरे दूर होता है और परिणामस्वरूप हमारी बुद्धि भी बढती जाती है।
६) अपने सुधार के लिए, कष्ट देने वाली पुरानी अादतों को छोडना भी किसी-किसी के लिए कठिन हो सकता है, परन्तु इस विधि में अस्वभाविक रूप से त्याग करने जैसी कोई बात ही नहीं है। शारीरिक-मानसिक दोषों आदि का त्याग भी स्वाभाविक रूप से ही होता है।
७) बाहरी सहायता पर सम्पूर्ण निर्भरता लक्ष्य प्राप्ति में सबसे बडी बाधा सिद्ध होती है। इस विधि में हमारे अंतःकरण में भी भरी पडी अथाह शक्ति को ही जगाकर उपयोग में लगाया जाता है, फलस्वरूप बाहरी सहायता पर कम से कम निर्भर रहना पडता है।
८) हमारे स्थल शरीर पर लगने वाले पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण बल से तो हम सब परिचित ही हैं। इसे कुछ कम ही सही हमारे मन आदि अंतःकरण में भी तो कुछ जडता ही है, अतः इस पर भी यह गुरूत्वाकर्षण बल लगाना सही स्वाभाविक है। इस बल से अंतःकरण बँधा हुआ सा होने से मन में सहज शक्ति और आनन्द कैसे सम्भव हो सकता है?
सूर्यनमस्कार के अभ्यास द्वारा अन्तःकरण में प्राण की आपूर्ति व्यवस्थित रूप से होने के कारण इसकी जडता धीरे-धीरे कम होने से पृथ्वी का गुरूत्वाकर्षण बल तो अपेक्षाकृत कम ही लगता है, साथ ही सूर्य सम्बन्धी रजोगुणी प्राण बढने से उसकी ओर आकर्षण भी बढता है। इस प्रकार मन निम्न-स्तरीय खिंचाव से मुक्त होकर ऊपर की ओर उठते हुए शुद्ध होता जाता है और इसके साथ ही हमारे आनन्द में भी अपने आप वृद्धि होती रहती है। यह क्रम और भी ऊँचे स्तरों तक निरन्तर चलता ही रहता है।
९) कर्म कौशल का अाधार भावा शुद्धि है और अष्टांग सूर्यनमस्कार इसको विकसित करने का सरल, सहज और श्रेष्ठ साधन है।
१०) ध्यान-धारणा आदि को कठिन तो नहीं कहा जा सकता परन्तु जो उन्हें कठिन मान बैठे है, उनको समझाना भी तो सरल नहीं। सूर्यनमस्कार उनके लिए भी ईश्वर प्राप्ति का मार्ग सरल और सहज बना देता है।
सूर्यनमस्कार की विशेषतााएँ
Publication Year | 2014 |
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VRM Code | 1600 |
Edition | 1 |
Volumes | 1 |
Format | Soft Cover |
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